-:स्कंद पुराण :-
🔷 परिचय:
स्कंद पुराण हिन्दू धर्म के 18 महापुराणों में सबसे बड़ा पुराण है। यह भगवान शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय (स्कन्द) से संबंधित पुराण है, जिसमें विभिन्न तीर्थों, धार्मिक कर्तव्यों और उपासना पद्धतियों का वर्णन है।
🕰️ ऐतिहासिक समय:
रचना काल: स्कन्द पुराण का प्रारंभिक रूप 6वीं से 8वीं शताब्दी ईस्वी के बीच रचा गया माना जाता है।
विस्तार काल: इसके विभिन्न अंश 11वीं से 15वीं शताब्दी तक जोड़े गए।
यह ग्रंथ समय के साथ विस्तृत होता गया और इसमें अनेक स्थानीय संस्करणों और उपखंडों की वृद्धि हुई।
✍️ लेखक कौन हैं?
इसकी रचना किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि अनेक ऋषियों और पुराणकारों द्वारा समय-समय पर की गई मानी जाती है।
मुख्य रूप से इसे व्यास मुनि द्वारा संकलित किया गया बताया गया है, जो सभी पुराणों के रचयिता माने जाते हैं।
📚 स्कन्द पुराण में क्या-क्या लिखा है? (मुख्य विषयवस्तु संक्षेप में):
भगवान शिव और स्कन्द (कार्तिकेय) की महिमा
तीर्थ यात्रा महिमा – काशी, प्रयाग, केदारनाथ, बद्रीनाथ, श्रीशैल, हरिद्वार आदि तीर्थों का महत्व।
धर्म और आचारशास्त्र – श्राद्ध, व्रत, दान, यज्ञ, तर्पण की विधियाँ।
पर्व और त्योहार – शिवरात्रि, नवरात्रि, कार्तिक मास की विशेषता।
अध्यात्म और भक्ति मार्ग – भक्ति, तपस्या और ध्यान का महत्व।
नैतिक शिक्षा और नीति कथाएँ – राजा-प्रजा, धर्म-अधर्म के उदाहरणों के माध्यम से शिक्षाएँ।
पुरातन कथाएँ और आख्यान – विभिन्न युगों की कथाएँ, देवी-देवताओं की लीलाएँ।
तीर्थखंड – स्कन्द पुराण के सबसे बड़े भाग में भारत के प्रसिद्ध तीर्थों का विस्तार से वर्णन है।
🔖 वर्तमान महत्व:
स्कन्द पुराण आज भी धार्मिक अनुष्ठानों और तीर्थ यात्राओं के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
यह हिन्दू संस्कृति, तीर्थ व्यवस्था, और धार्मिक परंपराओं को समझने का समृद्ध स्रोत है।
✍️ निष्कर्ष:
स्कन्द पुराण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और धर्म का एक जीवंत दस्तावेज़ है। इसकी गहराई में भारतीय समाज, संस्कृति और आस्था की झलक मिलती है ।

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